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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)

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शाखा का महत्व: RSS के संगठनात्मक ढांचे का परिचय स्थापना और संस्थापक: राष्ट्र सेवक संघ (RSS) की स्थापना 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन नागपुर, महाराष्ट्र में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। उस समय भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था, और देश के स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा था। डॉ. हेडगेवार ने हिंदू समाज में अनुशासन, एकता, और राष्ट्रप्रेम की भावना को मजबूत करने के उद्देश्य से RSS की स्थापना की। इस संगठन का ध्येय समाज को एकजुट और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदार बनाने का था। RSS की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य: हिंदू समाज को संगठित और अनुशासित करना। राष्ट्रवाद और देशभक्ति की भावना को मजबूत करना। भारतीय संस्कृति, सभ्यता और परंपराओं को पुनर्जीवित और संरक्षित करना। राष्ट्र के हित में सामाजिक और नैतिक मूल्यों का प्रचार करना। RSS के सरसंघचालक (प्रमुख): RSS में सरसंघचालक संगठन का सर्वोच्च पद होता है। अब तक RSS के कई प्रमुख रहे हैं: डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार (1925-1940) – संस्थापक और पहले सरसंघचालक। माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरुजी) (1940-1973) – संघ...

पुंगनूर गाय कैसे, कहां से और कौन खरीद सकता है?

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पुंगनूर गाय एक दुर्लभ और लघु आकार की गाय की नस्ल है, जो विशेष रूप से आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के पुंगनूर इलाके में पाई जाती है। यह गाय अपने छोटे आकार, कम चारा और पानी की खपत, और उच्च गुणवत्ता वाले दूध के लिए जानी जाती है, जिससे यह बहुत लोकप्रिय हो रही है। आइए आपके सवालों का क्रम से उत्तर देते हैं: 1. पुंगनूर गाय कैसे, कहां से और कौन खरीद सकता है? कहां से: पुंगनूर गाय मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश के पुंगनूर क्षेत्र से उपलब्ध होती है, लेकिन अब यह कई अन्य राज्यों में भी ब्रीडिंग के माध्यम से मिल सकती है। आप इसे किसी स्थानीय पशु बाजार, पुंगनूर नस्ल के पालन करने वाले किसान या डेयरी फॉर्म से खरीद सकते हैं। कैसे खरीदें: आप ऑनलाइन पशु खरीदने वाले प्लेटफार्मों पर भी इस नस्ल के गायों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं या किसी प्रजनन केंद्र या ब्रीडर से सीधे संपर्क कर सकते हैं। कौन खरीद सकता है: कोई भी व्यक्ति जो कानूनी तौर पर गायों का पालन-पोषण करना चाहता है और जिसके पास उचित स्थान और संसाधन हैं, वह पुंगनूर गाय खरीद सकता है। 2. कितने में खरीद सकते हैं? पुंगनूर गाय की कीमत उसके ...

वस्तु विनिमय परंपरा (Barter)

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वस्तु विनिमय परंपरा क्या है? उत्तर: अदल-बदल का व्यापार या व्यवहार करना। यह सिर्फ "एम.बी.ए." का एक विषय नहीं बल्कि सैकड़ों सालों से चली आ रही प्राचीन सनातनी परंपरा है जिसे आज भी हम इस्तेमाल करते हैं, परंतु नाम बदल कर। थोड़ा विस्तार से समझिए - जब किसी एक वस्तु या सेवा के बदले दूसरी वस्तु या सेवा का लेन-देन होता है, तो इसे वस्तु विनिमय (Bartering) कहते हैं। जैसे, एक बैल के बदले 10 बकरियां देना। इस पद्धति में विनिमय की सार्वजनिक (सर्वमान्य) इकाई अर्थात मुद्रा (रुपया-पैसा) का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मुद्रा के प्रादुर्भाव के पहले, सारा लेन-देन (विनिमय) वस्तु विनिमय के रूप में ही होता था। आजकल भी मौद्रिक संकट की स्थितियों में (जब मुद्रा का मूल्य बहुत परिवर्तनशील हो; मुद्रास्फीति के कारण मुद्रा का बहुत ही अवमूल्यन हो गया हो) वस्तु विनिमय का सहारा लिया जाता है। कुछ अंतरजालीय स्थलों जैसे Craigslist आदि पर भी वस्तु विनिमय ही चलता है। कई गाँवों में, मैंने देखा है कि नाई, लोहार और कुम्हार जैसी आवश्यक सेवाएं आज भी इसी तकनीक से चलती हैं। किसान खेती करता है, ग्वाला गौ-पालन कर...

कंपनी छोड़ने की सलाह देते हुए भी HR हेड क्यों बना हुआ है? समझें इसके कारण

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  अगर कंपनी का HR हेड आपको दूसरी कंपनी में नौकरी ढूंढने और वहां मौका मिलते ही इस कंपनी को छोड़ने की सलाह दे रहा है, जबकि वो खुद सालों से उसी कंपनी में बना हुआ है, तो यह स्थिति कई सवाल खड़े करती है और इसके कई अर्थ हो सकते हैं। आइए इसे विस्तार से समझते हैं: कंपनी की आंतरिक समस्याएँ : हो सकता है कि HR हेड को कंपनी की आंतरिक स्थिति के बारे में गहरी जानकारी हो और उन्हें यह एहसास हो कि कंपनी का भविष्य सुरक्षित नहीं है। ऐसे में, हो सकता है कि कंपनी वित्तीय मुश्किलों से गुजर रही हो, बड़े प्रोजेक्ट्स हाथ से जा रहे हों या फिर आने वाले समय में बड़े पैमाने पर छंटनी की योजना बन रही हो। HR हेड खुद एक सुरक्षित स्थिति में हो सकते हैं, लेकिन वो आपको भविष्य की मुश्किलों से बचने के लिए सलाह दे रहे हैं कि आप किसी और कंपनी में अवसर खोजें। इस तरह की सलाह देने का मतलब हो सकता है कि कंपनी के अंदर कुछ गंभीर समस्याएँ हैं जो अभी सार्वजनिक नहीं हुई हैं, और HR हेड आपको सचेत करना चाहते हैं ताकि आप अपने करियर की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें। यह एक संकेत हो सकता है कि कंपनी में भविष्य में बड़ी चुनौतियाँ आ सकती हैं। ...

भारत में छुआछूत, विभाजन की मानसिकता, और सनातन भारतीय समाज की संरचना: एक पुनर्विचार

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भारत में छुआछूत, विभाजन की मानसिकता, और सनातन भारतीय समाज की संरचना: एक पुनर्विचार भारत, जिसकी सभ्यता हजारों वर्षों से समृद्ध और जटिल रही है, वह एक ऐसी संस्कृति को समेटे हुए है जिसमें सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक ताने-बाने गहरे बंधे हुए हैं। भारतीय समाज की इस संरचना में जाति व्यवस्था, छुआछूत, और विभाजन की मानसिकता ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, यह समझना आवश्यक है कि इस संरचना की मूल भावना में सामाजिक न्याय, समानता और सर्वजन सुखाय का आदर्श निहित है। इस लेख में, हम छुआछूत की उत्पत्ति, अंग्रेजों की विभाजनकारी मानसिकता, कांग्रेस की सत्ता हस्तांतरण के बाद की नीतियों, और भारतीय जाति व्यवस्था की खूबसूरती और समृद्धता को समझने की कोशिश करेंगे। छुआछूत की उत्पत्ति और सामाजिक सुरक्षा छुआछूत की परंपरा का आरंभ भारतीय समाज में एक सामाजिक सुरक्षा उपाय के रूप में हुआ था। मेरे स्वर्गीय दादा जी के अनुसार, छुआछूत का मूल उद्देश्य उन धर्मांतरित लोगों से समाज की रक्षा करना था, जिन्हें मलेच्छ कहा जाता था। ये लोग मुस्लिम शासन के दौरान सनातन धर्म से अलग हुए और एक अलग संस्कृति और जीवन शैली को अपनाया।...

चंद्रशेखर आज़ाद: स्वतंत्रता के प्रतीक

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चंद्रशेखर आज़ाद: स्वतंत्रता के प्रतीक चंद्रशेखर आज़ाद, जिनका नाम ही स्वतंत्रता का पर्याय बन गया था, का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके गांव का नाम भाबरा था, जो एक छोटा सा गाँव है। उनके पिता, सीताराम तिवारी, एक विद्वान और पुजारी थे, और उनकी माता, जगरानी देवी, ने उन्हें साहस और ईमानदारी के मूल्य सिखाए। अपने प्रारंभिक वर्षों से ही, चंद्रशेखर अपने विद्रोही स्वभाव के लिए जाने जाते थे, जो अक्सर अपने आस-पास की अन्याय और परंपराओं को चुनौती देते थे। क्रांति की चिंगारी 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड ने युवा चंद्रशेखर के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया। जनरल डायर द्वारा शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर किए गए क्रूर अत्याचार ने उनके मन में गहरा आघात पहुंचाया। इस घटना ने, और भगत सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियों ने, उनके भीतर स्वतंत्रता के लिए एक गहरी ज्वाला जगा दी। महात्मा गांधी द्वारा नेतृत्व किए गए असहयोग आंदोलन में शामिल होने का उनका निर्णय उनके समर्पण का प्रमाण था, भले ही इसका मतलब उनकी औपचारिक शिक्षा को छोड़ना हो। एक क्रांतिकारी की यात्रा बनारस में आने के बाद, चंद्रशेखर के...

जाति जनगणना की मांग: लाभ और संभावित नुकसान

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  जाति जनगणना की मांग: लाभ और संभावित नुकसान जाति जनगणना का मुद्दा एक अत्यंत महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय है, जिसे समझने और विवेकपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। इस मुद्दे पर विचार करते समय इसके पीछे की राजनीतिक मंशा, सामाजिक प्रभाव और इसके संभावित दुष्परिणामों का विश्लेषण आवश्यक है। संभावित नुकसान: सामाजिक विभाजन:  जाति जनगणना से समाज में विभाजन बढ़ सकता है। हर जाति अपनी संख्या के आधार पर अधिक अधिकारों की मांग कर सकती है, जिससे सामाजिक सद्भाव और एकता को नुकसान पहुँच सकता है। समाज में पहले से मौजूद जातिगत तनाव और अधिक गहरा हो सकता है, जो अंततः सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देगा। राजनीतिक लाभ की होड़:  कुछ राजनीतिक दल जाति जनगणना का उपयोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए कर सकते हैं। इससे जाति आधारित राजनीति और भी तीखी हो सकती है, जिससे विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक सुधार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पीछे छूट सकते हैं। यह राजनीति को एक संकीर्ण जातिगत एजेंडे तक सीमित कर सकता है। आरक्षण की सीमा का विस्तार:  जाति जनगणना के बाद, विभिन्न जातियाँ अपने लिए अधिक आरक्षण की मांग कर सकती ह...