खिचड़ी का सबक: भारतीय राजनीति में एकता का महत्व
लेखक: बिमलेंद्र झा
Social activist #industrialization_in_bihar
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किसी समय की बात है, एक हॉस्टल था जहाँ 100 विद्यार्थी रहते थे। हर सुबह कैंटीन में नाश्ते के लिए खिचड़ी बनाई जाती थी। कुछ दिन तक सबने इसे सहा, लेकिन धीरे-धीरे 85 विद्यार्थियों को खिचड़ी से ऊब होने लगी।
एक दिन उन्होंने वार्डन से शिकायत की और कहा, "हर रोज खिचड़ी नहीं खा सकते। नाश्ते में बदलाव लाना होगा।"
लेकिन 15 विद्यार्थी, जिन्हें खिचड़ी बहुत पसंद थी, बोले, "हमें तो खिचड़ी ही चाहिए।"
वार्डन ने समस्या का हल निकालने के लिए वोटिंग का सुझाव दिया। सभी ने अपनी पसंद के लिए वोट किया। 85 विद्यार्थी जो खिचड़ी से परेशान थे, उन्होंने अलग-अलग विकल्प चुने:
13 ने डोसा चुना
12 ने पराठा
14 ने रोटी
12 ने ब्रेड-बटर
11 ने नूडल्स
12 ने पूरी-सब्जी
11 ने छोले-भटूरे
लेकिन 15 विद्यार्थियों ने संगठित होकर खिचड़ी को ही वोट दिया। चूंकि 85 विद्यार्थी आपस में बंटे हुए थे, किसी भी विकल्प को बहुमत नहीं मिला। नतीजा यह हुआ कि कैंटीन में फिर से खिचड़ी बनने लगी।
कहानी और सन्देश: भारतीय राजनीतिक दृष्टिकोण
यह कहानी केवल एक हॉस्टल के 85 विद्यार्थियों और उनके नाश्ते की समस्या भर नहीं है, बल्कि यह भारतीय राजनीति और समाज की एक गहरी सच्चाई को उजागर करती है। यह दर्शाती है कि कैसे अल्पसंख्यक भी संगठन और एकजुटता के माध्यम से बहुसंख्यकों पर प्रभाव डाल सकते हैं।
वर्तमान भारतीय राजनीति में सन्देश
भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहाँ "बहुमत" का शासन माना जाता है। लेकिन, वास्तविकता यह है कि अक्सर बहुमत (85%) विभाजित और असंगठित होता है, जबकि अल्पसंख्यक (15%) संगठित और रणनीतिक। इसका परिणाम यह होता है कि संगठित अल्पसंख्यक समूह, भले ही संख्या में कम हों, अपनी एकता और स्पष्ट दृष्टिकोण के कारण सत्ता या नीति-निर्माण पर प्रभावी नियंत्रण प्राप्त कर लेते हैं।
1. विभाजित बहुसंख्यक और संगठित अल्पसंख्यक
कहानी में 85 विद्यार्थियों ने अपने मत विभाजित कर दिए—डोसा, पराठा, रोटी, ब्रैड-बटर, नूडल्स, पूरी-सब्जी, और छोले-भटूरे। इस प्रकार उनकी पसंद स्पष्ट नहीं हो सकी और कोई विकल्प बहुमत नहीं बना पाया। दूसरी ओर, 15 विद्यार्थियों ने संगठित रहकर खिचड़ी के पक्ष में मतदान किया। नतीजतन, उनका निर्णय लागू हुआ।
इसी तरह, भारत में बहुसंख्यक समाज (हिंदू समाज) को धार्मिक, जातीय, भाषाई और क्षेत्रीय आधारों पर विभाजित कर दिया गया है। जबकि कई अल्पसंख्यक समुदाय अपनी पहचान और अधिकारों को लेकर संगठित हैं और प्रभावशाली तरीके से अपनी मांगें रखते हैं।
2. राजनीतिक दलों की रणनीति
भारतीय राजनीति में यह विभाजन और अधिक जटिल हो जाता है, क्योंकि राजनीतिक दल बहुसंख्यक समाज को और अधिक विभाजित करने का प्रयास करते हैं।
जाति आधारित राजनीति: दलित, पिछड़े, सामान्य, अनुसूचित जाति/जनजाति के नाम पर विभाजन।
क्षेत्रीयता: उत्तर भारत बनाम दक्षिण भारत, ग्रामीण बनाम शहरी।
धर्म आधारित विभाजन: बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक।
भाषा आधारित विभाजन: प्रांतीय बनाम परप्रांतीय।
भाषा के आधार पर विभाजन भारतीय राजनीति में एक प्रमुख उपकरण बन गया है। राजनीतिक दल जानते हैं कि भाषा और प्रांतीय अस्मिता का इस्तेमाल करके बहुसंख्यक समाज को कमजोर किया जा सकता है। उदाहरण के लिए:
हिंदी बनाम गैर-हिंदी विवाद: हिंदी भाषी राज्यों और अन्य भाषायी राज्यों के बीच भेदभाव को बढ़ावा देकर राजनीतिक समर्थन जुटाया जाता है। इससे सांस्कृतिक एकता कमजोर होती है और समाज के बीच दरार पैदा होती है।
प्रवासी बनाम स्थानीय विवाद: जैसे 'परप्रांतीयों' के खिलाफ स्थानीय हितों की बात करके सामाजिक तानाबाना तोड़ा जाता है।
इस प्रकार, भाषा का उपयोग राजनीतिक एजेंडा को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है, जिससे बहुसंख्यक समाज संगठित नहीं हो पाता और उनकी सामूहिक शक्ति बिखर जाती है।
3. शिक्षा: संगठित होकर संघर्ष करें
अगर बहुसंख्यक समाज संगठित होता और अपनी प्राथमिकताओं को तय करता, तो 85 विद्यार्थी आसानी से अपना नाश्ता बदल सकते थे।
इसी प्रकार, अगर समाज जाति, धर्म और क्षेत्रीय पहचान से ऊपर उठकर राष्ट्रहित और सांस्कृतिक मूल्यों के लिए संगठित हो जाए, तो देश की राजनीति में वर्चस्व स्थापित किया जा सकता है।
संदेश
एकता में शक्ति है: विभाजित समाज शक्तिहीन होता है। संगठित होकर ही कोई भी समुदाय अपनी बात मनवा सकता है।
शिक्षा और जागरूकता: शिक्षित समाज ही अपने अधिकारों को समझ सकता है और विभाजनकारी राजनीति का विरोध कर सकता है।
सामंजस्य और संवाद: 85 विद्यार्थियों ने संवाद नहीं किया। संवाद और सामंजस्य से वे अपनी पसंद को बहुमत में बदल सकते थे।
यदि आज बहुसंख्यक समाज (85%) जाति, धर्म और क्षेत्रीय विभाजन से ऊपर उठकर एकजुट नहीं हुआ, तो राजनीति में "खिचड़ी" जैसे निर्णय थोपे जाते रहेंगे।
"एक बनो, नेक बनो, शिक्षित बनो और संगठित होकर देशहित में संघर्ष करो।" यही वर्तमान समाज और राजनीति की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
Disclaimer: यह लेख भारतीय राजनीति और सामाजिक संगठन पर चर्चा के उद्देश्य से लिखा गया है। इसका उद्देश्य किसी भी समुदाय, वर्ग, या विचारधारा का पक्ष लेना या विरोध करना नहीं है।
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