छठ पूजा: प्रकृति, भक्ति और समरसता का महापर्व
परिचय
यह महापर्व, जिसे छठी मइया का त्योहार भी कहा जाता है, बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में गहरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह सनातन वैदिक परंपरा का एक अनुपम उत्सव है, जो सूर्य और प्रकृति की उपासना का प्रतीक है। चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व कार्तिक मास की शुक्ल षष्ठी को अपने चरम पर होता है, इसलिए इसे छठ कहा जाता है। इस महापर्व में छठी मइया (षष्ठी देवी) और सूर्य देव की आराधना की जाती है, जो संतान कल्याण, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना को पूर्ण करते हैं। छठी मइया: संतान की रक्षक
हिंदू मान्यताओं में छठी मइया को षष्ठी देवी के रूप में पूजा जाता है, जो प्रकृति और मातृत्व का स्वरूप हैं। इन्हें माता पार्वती का एक रूप माना जाता है, जो बच्चों की रक्षा और परिवार की सुख-समृद्धि की देवी हैं। मान्यता है कि यह पर्व संतान प्राप्ति, उनकी दीर्घायु और कल्याण के लिए विशेष रूप से प्रभावी है। कुछ परंपराओं में छठी मइया को सूर्य की शक्ति, उनकी बहन या पत्नी उषा और प्रत्युषा से जोड़ा जाता है, जो इस महापर्व में उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की प्रथा को दर्शाता है। छठ व्रत का उद्देश्य
यह पर्व संतान की कामना, उनके स्वास्थ्य, परिवार की समृद्धि, रोगों से मुक्ति, कार्य सिद्धि, विवाह में बाधा निवारण और कर्ज मुक्ति जैसे उद्देश्यों के लिए मनाया जाता है। कठोर निर्जला उपवास और शुद्धता के साथ किया गया यह व्रत भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करता है। विशेष रूप से नि:संतान दंपति, बीमार बच्चों के माता-पिता और कष्टों से जूझ रहे लोग इस महापर्व में गहरी आस्था रखते हैं।
छठ पूजा की पौराणिक और लोक कथाएँइस महापर्व की जड़ें वैदिक और पौराणिक कथाओं से जुड़ी हैं, जो भक्तों में गहरी आस्था जगाती हैं। निम्नलिखित कथाएँ इस पर्व के ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व को रेखांकित करती हैं:
चार दिवसीय अनुष्ठान- रामायण और श्रीराम-सीता की सूर्य उपासना
मान्यता है कि लंका विजय के बाद श्रीराम और माता सीता ने अयोध्या लौटकर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देव और प्रकृति की पूजा की थी। वाल्मीकि रामायण के युद्धकांड में वर्णित आदित्य हृदय स्तोत्र, जो ऋषि अगस्त्य ने श्रीराम को सूर्य उपासना के लिए उपदेशित किया, इस पर्व का प्रारंभिक रूप माना जाता है। यह कथा इस महापर्व को सूर्य की जीवनदायी शक्ति और भक्ति की सहजता से जोड़ती है। - महाभारत और द्रौपदी का छठ व्रत
महाभारत की एक कथा के अनुसार, द्रौपदी ने पांडवों के कष्टों के निवारण और उनकी विजय के लिए सूर्य और छठी मइया की उपासना की थी। इस व्रत के फलस्वरूप पांडवों को उनके राज्य और सम्मान की पुन: प्राप्ति हुई। यह कथा इस पर्व को संकट निवारण और परिवार की समृद्धि से जोड़ती है, जो आज भी भक्तों को प्रेरित करती है। - कर्ण और सूर्य उपासना की परंपरा
महाभारत में सूर्यपुत्र कर्ण प्रतिदिन सूर्य को जल अर्घ्य अर्पित करते थे। लोक मान्यता में इस प्रथा को छठ पूजा की सूर्य उपासना से जोड़ा जाता है। कर्ण की भक्ति और निष्ठा इस पर्व में डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा का आधार मानी जाती है। - लोक कथा: राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी
एक प्रचलित लोक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी निःसंतान थे। उन्होंने ऋषियों के मार्गदर्शन में छठी मइया और सूर्य देव का कठोर व्रत किया। छठी मइया की कृपा से उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ, जो हालांकि जन्म के समय मृत पैदा हुआ। रानी मालिनी ने पुनः छठ व्रत किया, और उनकी भक्ति से सूर्य देव ने शिशु को जीवित कर दिया। यह कथा इस महापर्व को संतान प्राप्ति और उनकी रक्षा से जोड़ती है, जो विशेष रूप से माता-पिता में गहरी आस्था जगाती है। - वैदिक परंपरा और ऋषियों की सूर्य उपासना
ऋग्वेद में सूर्य को विश्व का नेत्र और जीवनदाता कहा गया है। वैदिक काल में ऋषि-मुनियों ने सूर्य और प्रकृति की उपासना शुरू की, जो इस पर्व का आधार बनी। कुछ विद्वानों का मानना है कि मगध क्षेत्र में सूर्य मंदिरों (जैसे बिहार के देव सूर्य मंदिर) की स्थापना ने इस परंपरा को लोकप्रिय बनाया। यह कथा इस पर्व को वैदिक जड़ों से जोड़ती है। 
इस महापर्व के चार दिन भक्ति, संयम और प्रकृति के साथ सामंजस्य का प्रतीक हैं:
- नहाय-खाय: व्रती पवित्र नदियों या जलाशयों में स्नान कर शुद्धता अर्जित करते हैं। शाकाहारी भोजन, जैसे चावल, दाल और कद्दू की सब्जी, सूर्य को अर्पित कर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
 - खरना: सूर्यास्त तक निर्जल उपवास के बाद व्रती गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद तैयार करते हैं। यह सादगी और छठी मइया के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
 - संध्या अर्घ्य: तीसरे दिन, व्रती डूबते सूर्य को बांस की सूप में सजे फल, ठेकुआ और प्रसाद के साथ अर्घ्य देते हैं। रातभर भजन और लोकगीतों (जैसे "केलवा के पात पर") में लीन रहते हैं।
 - उषा अर्घ्य: अंतिम दिन, उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन होता है। यह नई शुरुआत और सूर्य की जीवनदायी ऊर्जा का उत्सव है।
 
यह पर्व सूर्य, जल और पृथ्वी—प्रकृति के मूल तत्वों—के प्रति आभार व्यक्त करता है। नदियों और तालाबों में अर्घ्य देने की प्रथा पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा देती है। बिहार के गंगा घाटों से लेकर मुंबई के जूहू बीच तक, व्रती जलाशयों की स्वच्छता पर ध्यान देते हैं, जो इस महापर्व को पर्यावरणीय चेतना का प्रतीक बनाता है। सामाजिक समरसता और आर्थिक प्रभाव
यह पर्व सामाजिक भेदभाव मिटाकर एकता का संदेश देता है। मल्लाह व केवट समुदाय जलाशयों की सफाई, डोम समुदाय बांस की सूप, और किसान गन्ना-कद्दू जैसे प्रसाद सामग्री प्रदान करते हैं। ये योगदान सामुदायिक सहयोग को दर्शाते हैं।
आर्थिक रूप से, यह पर्व स्थानीय बाजारों को गति देता है। बिहार में प्रवासी श्रमिकों की वापसी से पर्यटन बढ़ता है, जबकि दिल्ली और मुंबई में पूजा सामग्री की मांग स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल देती है।
भक्त और भगवान का सीधा संबंध
यह महापर्व भक्ति की स्वतंत्रता और आध्यात्मिक सरलता का प्रतीक है, जहाँ भक्त और भगवान के बीच कोई मध्यस्थ नहीं होता। इस पर्व में पुरोहित की आवश्यकता नहीं पड़ती; भक्त अपनी मातृभाषा में, हृदय से सूर्य देव और छठी मइया की स्तुति करते हैं। यह सहजता भक्तों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ती है और उन्हें बिना जटिल अनुष्ठानों के श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर देती है। पुरोहित केवल तिथि निर्धारण या सामान्य मार्गदर्शन तक सीमित रहते हैं, जिससे इस पर्व की आत्मा भक्तों की निश्छल भक्ति में निहित रहती है।
 कर्मभूमि पर छठ का प्रसारयह महापर्व भक्ति की स्वतंत्रता और आध्यात्मिक सरलता का प्रतीक है, जहाँ भक्त और भगवान के बीच कोई मध्यस्थ नहीं होता। इस पर्व में पुरोहित की आवश्यकता नहीं पड़ती; भक्त अपनी मातृभाषा में, हृदय से सूर्य देव और छठी मइया की स्तुति करते हैं। यह सहजता भक्तों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ती है और उन्हें बिना जटिल अनुष्ठानों के श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर देती है। पुरोहित केवल तिथि निर्धारण या सामान्य मार्गदर्शन तक सीमित रहते हैं, जिससे इस पर्व की आत्मा भक्तों की निश्छल भक्ति में निहित रहती है।
प्रवासी समुदायों ने इस पर्व को दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और विदेशों (जैसे दुबई, अमेरिका) तक पहुँचाया है। यमुना के किनारे या जूहू बीच पर हजारों भक्त एकत्र होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। स्थानीय प्रशासन घाटों की व्यवस्था और सुरक्षा सुनिश्चित करता है, जो इस महापर्व की राष्ट्रीय और वैश्विक पहचान को दर्शाता है। सभी सनातनियों के लिए प्रासंगिकता
यह पर्व केवल बिहार-यूपी तक सीमित नहीं है। सूर्य उपासना वैदिक परंपरा का हिस्सा है, जैसा कि गायत्री मंत्र और आदित्य हृदय स्तोत्र में देखा जाता है। दक्षिण भारत का पोंगल और बंगाल की छेरा पूजा जैसे पर्व भी सूर्य पूजा से जुड़े हैं। इसे क्षेत्रीय मानना वैदिक एकता को कम करता है। सभी सनातनी, जो सूर्य को जीवनदाता मानते हैं, इस महापर्व को श्रद्धा और शुद्धता के साथ अपना सकते हैं।
षष्ठी देवी और छठ पूजा
इस महापर्व की आत्मा छठी मइया, यानी षष्ठी देवी, में निहित है, जिनका उल्लेख विभिन्न पौराणिक ग्रंथों में मिलता है।
इस महापर्व की आत्मा छठी मइया, यानी षष्ठी देवी, में निहित है, जिनका उल्लेख विभिन्न पौराणिक ग्रंथों में मिलता है।
देवी भागवत पुराण में उन्हें माता पार्वती का रूप और संतान की रक्षक बताया गया है:  
षष्ठी देवी नमस्तुभ्यं सर्वसिद्धिप्रदायिनी। पुत्रपौत्रादि दायिनी सर्वं मंगलदायिनी॥
मार्कण्डेय पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में षष्ठी देवी को मातृत्व और बच्चों की रक्षा से जोड़ा गया है, जो इस पर्व की संतान-केंद्रित भक्ति को पुष्ट करता है। स्कंद पुराण में उन्हें स्कंदमाता के रूप में वर्णित किया गया है, जो नवजात शिशुओं की रक्षक हैं।
लोक परंपराओं में, जैसे राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी की कथा, षष्ठी देवी की भक्ति से मृत शिशु के जीवित होने का उल्लेख मिलता है, जो भोजपुरी लोकगीतों जैसे "केलवा के पात पर" में गाया जाता है। ये ग्रंथीय और लोक उल्लेख इस महापर्व को वैदिक जड़ों और जन-आस्था से जोड़ते हैं, जो इसे संतान कल्याण और प्रकृति पूजा का प्रतीक बनाते हैं।
मार्कण्डेय पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में षष्ठी देवी को मातृत्व और बच्चों की रक्षा से जोड़ा गया है, जो इस पर्व की संतान-केंद्रित भक्ति को पुष्ट करता है। स्कंद पुराण में उन्हें स्कंदमाता के रूप में वर्णित किया गया है, जो नवजात शिशुओं की रक्षक हैं।
लोक परंपराओं में, जैसे राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी की कथा, षष्ठी देवी की भक्ति से मृत शिशु के जीवित होने का उल्लेख मिलता है, जो भोजपुरी लोकगीतों जैसे "केलवा के पात पर" में गाया जाता है। ये ग्रंथीय और लोक उल्लेख इस महापर्व को वैदिक जड़ों और जन-आस्था से जोड़ते हैं, जो इसे संतान कल्याण और प्रकृति पूजा का प्रतीक बनाते हैं।
छठ पूजा में जल में खड़े होने का वैज्ञानिक कारणछठ पूजा में भक्तों द्वारा नदियों, तालाबों या जलाशयों में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने की प्रथा न केवल आध्यात्मिक है, बल्कि इसके पीछे गहन वैज्ञानिक आधार भी है। यह प्रथा शरीर के पंच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) की शुद्धि (भूत शुद्धि) से जुड़ी है। जल में खड़े होने से शरीर का जल तत्व संतुलित होता है, जो भावनात्मक स्थिरता और शांति प्रदान करता है। 
सूर्योदय और सूर्यास्त के समय कौन सी किरणें निकलती हैं, और वे मानव शरीर के किन हिस्सों को निरोगी बनाती हैं?- नाड़ी शुद्धि और ऊर्जा संचालन: जल में खड़े होने से शरीर की नाड़ियाँ (नस-तंत्र) सक्रिय होती हैं। ठंडा जल तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करता है, जो तनाव कम करता है, रक्त संचार बढ़ाता है और इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। वैदिक योग दर्शन के अनुसार, यह प्रक्रिया सौर ऊर्जा (सूर्य किरणों) को शरीर में अवशोषित करने में सहायक होती है, जिससे detoxification (विषाक्त पदार्थों का निष्कासन) होता है।
 - सूर्य ऊर्जा का अवशोषण: जल एक अच्छा चालक है, जो सूर्य की किरणों को शरीर तक पहुँचाने में मदद करता है। प्राचीन ऋषि इसी विधि से भोजन के बिना सूर्य ऊर्जा ग्रहण करते थे। आधुनिक विज्ञान के अनुसार, यह hydrotherapy (जल चिकित्सा) का रूप है, जो मांसपेशियों को आराम देता है और मानसिक शांति बढ़ाता है।
 
सूर्योदय (उषा काल) और सूर्यास्त (प्रत्युषा काल) के समय सूर्य की किरणें वायुमंडल की मोटी परतों से गुजरती हैं, जिससे हानिकारक पराबैंगनी (UVA/UVB) किरणें कम हो जाती हैं। ये समय सूर्य चिकित्सा (सूर्योपासना) के लिए सबसे सुरक्षित और लाभकारी माने जाते हैं। छठ पूजा में इन्हीं समयों पर अर्घ्य इसलिए दिया जाता है, क्योंकि ये किरणें शरीर को ऊर्जा प्रदान करती हैं बिना जलन या हानि के।
ये किरणें बैक्टीरिया/फंगस को नष्ट करती हैं, रक्त शुद्धि करती हैं और समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देती हैं। आयुर्वेद में इन्हें 'सूर्य चिकित्सा' कहा गया है, जो सेलुलर स्तर पर ऊर्जा प्रदान करती है। 
समय  |     मुख्य किरणें  | लाभकारी प्रभाव और शरीर के हिस्से  | 
|---|---|---|
सूर्योदय (उषा अर्घ्य)  |     इन्फ्रारेड (IR) किरणें,     हल्की UVB किरणें,        और सूर्य का प्रारंभिक     प्रकाश (सॉफ्ट UV)  | - विटामिन D संश्लेषण: त्वचा में विटामिन D बनता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है, इम्यून सिस्टम बढ़ाता है और कैंसर/मधुमेह जैसी बीमारियों से बचाव करता है।
- सेरोटोनिन हार्मोन: आँखों और मस्तिष्क को ऊर्जा मिलती है, जो अवसाद कम करता है, एकाग्रता बढ़ाता है।
- शरीर के हिस्से: त्वचा, हड्डियाँ, आँखें, मस्तिष्क (मानसिक स्वास्थ्य)।  | 
सूर्यास्त (संध्या अर्घ्य)  | इन्फ्रारेड किरणें, रेड लाइट स्पेक्ट्रम, कम UVB किरणें  | - सेलुलर मरम्मत: त्वचा की कोशिकाओं की मरम्मत, फंगल/बैक्टीरियल संक्रमण दूर होते हैं।
- तंत्रिका तंत्र शांत: तनाव कम, नींद सुधार, हार्मोन संतुलन।
- शरीर के हिस्से: त्वचा, तंत्रिका तंत्र, रक्त कोशिकाएँ (श्वेत रक्त कोशिकाओं की वृद्धि)।  | 
अर्घ्य चढ़ाने का वैज्ञानिक दृष्टिकोणअर्घ्य (जल अर्पण) छठ पूजा का केंद्रीय अनुष्ठान है, जो सूर्य को जल चढ़ाने का प्रतीक है। इसके पीछे वैज्ञानिक दृष्टिकोण सूर्य ऊर्जा के अवशोषण और प्रकृति संतुलन से जुड़ा है:
सार :- सौर ऊर्जा ग्रहण: अर्घ्य सूर्य की किरणों को जल के माध्यम से शरीर में अवशोषित करने की प्रक्रिया है। जल सूर्य ऊर्जा का चालक है, जो सूर्योदय/सूर्यास्त पर बैक्टीरियल संक्रमण नष्ट करता है और हार्मोन संतुलन करता है। यह detoxification को बढ़ावा देता है, इम्यूनिटी मजबूत करता है और विटामिन D अवशोषण में सहायक है।
 - सर्वरेंडर और सर्कैडियन रिदम: अर्घ्य जीवन-मृत्यु के चक्र (सूर्योदय-अस्त) का प्रतीक है, जो शरीर की जैविक घड़ी (सर्कैडियन रिदम) को संतुलित करता है। इससे नींद, पाचन और मानसिक स्वास्थ्य सुधरता है।
 - पर्यावरणीय संतुलन: अर्घ्य जल संरक्षण का संदेश देता है, क्योंकि यह नदियों की शुद्धि और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता को प्रोत्साहित करता है। वैज्ञानिक रूप से, यह सूर्य-जल का संयोजन है, जो कोशिकीय मरम्मत और ऊर्जा संचार को बढ़ाता है
 
यह महापर्व भक्ति, प्रकृति और सामाजिक समरसता का अनुपम संगम है। सूर्य और छठी मइया की उपासना के माध्यम से यह न केवल आध्यात्मिक शांति देता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक एकता को भी प्रोत्साहित करता है। जैसे दिल्ली में यमुना घाट और मुंबई में समुद्र तट इस पर्व की शोभा बढ़ाते हैं, वैसे ही इसे राष्ट्रीय स्तर पर सूर्य मंदिरों और घाटों के माध्यम से और विस्तार देना चाहिए। मूल श्लोक (ऋग्वेद 1.50.10):
येन सूर्य ज्योतिषा बाधसे तमो जगच्च विश्वमुदियर्षि भानुना।
भावार्थ: सूर्य अपने प्रकाश से अंधकार को दूर कर विश्व को रोशन करते हैं। यह पर्व सभी सनातनियों को वैदिक जीवन दर्शन से जोड़ता है।
  अस्वीकरण: यह लेख छठ पूजा की सांस्कृतिक और धार्मिक महत्ता को सम्मानजनक और समावेशी भावना के साथ प्रस्तुत करता है। किसी भी समुदाय या परंपरा का उल्लेख भेदभाव के इरादे से नहीं है। यदि कोई आपत्ति हो, तो वह अनजाने में हुई होगी, और हम इसके लिए खेद व्यक्त करते हैं।  भावार्थ: सूर्य अपने प्रकाश से अंधकार को दूर कर विश्व को रोशन करते हैं। यह पर्व सभी सनातनियों को वैदिक जीवन दर्शन से जोड़ता है।

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