भारतीय दर्शन शास्त्र और उनके रचयिता एवं आधुनिक प्रचारक







भारतीय दर्शन शास्त्र और उनके रचयिता एवं आधुनिक प्रचारक 

भारतीय दर्शन शास्त्र के छह प्रमुख शास्त्र और उनके रचयिता निम्नलिखित हैं, साथ ही आधुनिक समय में उनके प्रचारकों का विवरण भी दिया गया है:

1. सांख्य दर्शन

  • रचयिता: महर्षि कपिल
  • आधुनिक प्रचारक: स्वामी विवेकानंद, श्री अरविंद

2. योग दर्शन

  • रचयिता: महर्षि पतंजलि
  • आधुनिक प्रचारक: स्वामी विवेकानंद, बी.के.एस. अयंगर, परमहंस योगानंद

3. न्याय दर्शन

  • रचयिता: गौतम (गौतम मुनि)
  • आधुनिक प्रचारक: जॉर्ज थिबाउट (विदेशी विद्वान जिन्होंने न्याय दर्शन का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया)

4. वैशेषिक दर्शन

  • रचयिता: कणाद (कणाद मुनि)
  • आधुनिक प्रचारक: डॉ. एस. राधाकृष्णन (भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति, जो भारतीय दर्शन के महान विद्वान थे)

5. मीमांसा दर्शन

  • रचयिता: महर्षि जैमिनि
  • आधुनिक प्रचारक: स्वामी दयानंद सरस्वती (आर्य समाज के संस्थापक), मंडन मिश्र

6. वेदांत दर्शन

  • रचयिता: वेदव्यास (शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत का प्रचार किया)
  • आधुनिक प्रचारक: स्वामी विवेकानंद, स्वामी चिन्मयानंद, रामकृष्ण परमहंस, रमण महर्षि

आधुनिक समय में प्रचारक

आधुनिक युग में, भारतीय दर्शन शास्त्र के पुनरुत्थान और प्रचार में स्वामी विवेकानंद का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने पश्चिमी देशों में भारतीय दर्शन का प्रचार किया और उसे वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया। अन्य प्रमुख प्रचारकों में स्वामी चिन्मयानंद, श्री अरविंद, और महर्षि महेश योगी शामिल हैं, जिन्होंने विभिन्न दर्शनों को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत किया।

ये दार्शनिक भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता के प्रचारक रहे हैं, और उनके योगदान से इन दर्शनों का महत्व आज भी बना हुआ है।

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स्वामी विवेकानंद का वेदांत दर्शन के प्रचार और प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने भारतीय दर्शन और विशेष रूप से वेदांत को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया और इसे आधुनिक संदर्भ में लागू करने का प्रयास किया। उनके योगदान को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:

1. वेदांत का वैश्विक प्रसार:

  • स्वामी विवेकानंद ने 1893 के शिकागो धर्म महासभा (World's Parliament of Religions) में भाग लिया और वहां अपने प्रसिद्ध भाषण "सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ़ अमेरिका" के माध्यम से वेदांत दर्शन को पश्चिमी दुनिया में प्रस्तुत किया। इस भाषण ने पश्चिमी समाज में वेदांत और हिंदू धर्म के प्रति गहरी रुचि पैदा की।

2. अद्वैत वेदांत का प्रचार:

  • स्वामी विवेकानंद ने शंकराचार्य द्वारा प्रतिपादित अद्वैत वेदांत का प्रचार किया, जो कि आत्मा और परमात्मा की एकता पर आधारित है। उन्होंने इसे सरल और सुलभ भाषा में प्रस्तुत किया ताकि इसे आम जन भी समझ सकें।

3. आधुनिक समाज के लिए वेदांत का अनुप्रयोग:

  • स्वामी विवेकानंद ने वेदांत को केवल दार्शनिक विचारधारा तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे जीवन के हर क्षेत्र में लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने वेदांत के सिद्धांतों को व्यक्तिगत विकास, सामाजिक सेवा, और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के माध्यम से आधुनिक समाज के लिए प्रासंगिक बनाया।

4. रामकृष्ण मिशन की स्थापना:

  • स्वामी विवेकानंद ने 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य वेदांत और अन्य भारतीय दर्शनों का प्रचार और समाज की सेवा करना था। रामकृष्ण मिशन ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक सेवा के माध्यम से वेदांत के सिद्धांतों को व्यापक रूप से फैलाया।

5. पुस्तकें और लेख:

  • स्वामी विवेकानंद ने वेदांत दर्शन पर कई पुस्तकें और लेख लिखे, जिनमें "राजयोग," "ज्ञानयोग," और "कर्मयोग" प्रमुख हैं। इन पुस्तकों के माध्यम से उन्होंने वेदांत को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया और इसे आधुनिक संदर्भ में समझने में सहायता की।

6. विविध भाषण और प्रवचन:

  • स्वामी विवेकानंद ने भारत और विदेशों में अनेक भाषण और प्रवचन दिए, जिनमें उन्होंने वेदांत के सिद्धांतों का सरल और प्रभावी ढंग से वर्णन किया। उनके प्रवचनों ने हजारों लोगों को प्रेरित किया और वेदांत के प्रति उनकी आस्था को मजबूत किया।

निष्कर्ष:

स्वामी विवेकानंद ने वेदांत दर्शन को एक आधुनिक और व्यावहारिक दार्शनिक प्रणाली के रूप में प्रस्तुत किया। उनके कार्यों और शिक्षाओं ने न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में वेदांत के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके प्रयासों ने वेदांत को केवल एक धार्मिक और दार्शनिक प्रणाली के रूप में नहीं, बल्कि एक जीवन जीने के मार्ग के रूप में स्थापित किया।

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विश्व धर्म महासभा (World's Parliament of Religions) का आयोजन 1893 में शिकागो में हुआ था। इस ऐतिहासिक सभा में विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। कुछ प्रमुख धर्मों के संत और प्रतिनिधि निम्नलिखित थे:

  1. हिंदू धर्म: स्वामी विवेकानंद
  2. बौद्ध धर्म: भिक्षु Dharmapala (Anagarika Dharmapala)
  3. जैन धर्म: स्वामी सुखलालजी
  4. ईसाई धर्म: कई प्रमुख ईसाई विद्वान और पादरी, जिनमें प्रमुख थे फ्रांसिस्कन फादर पायस और प्रोफेसर डॉ. लुईस (आदिवासी ईसाई पादरी)
  5. मुस्लिम धर्म: सैयद अहमद खान (हालांकि उनका नाम उपस्थित प्रतिनिधियों की सूची में नहीं है, लेकिन उनके विचार और उनके योगदान को मान्यता दी गई थी)
  6. यहूदी धर्म: इजराइल डॉ. लियो बके

इनके अतिरिक्त भी विभिन्न अन्य धर्मों के प्रतिनिधि और विद्वान इस महासभा में शामिल हुए थे, जो कि धर्मों की विविधता और आपसी समझ को बढ़ावा देने के लिए एक मंच प्रदान किया।

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विश्व धर्म महासभा (World's Parliament of Religions) शिकागो में 11 से 27 सितंबर 1893 तक आयोजित हुई थी। स्वामी विवेकानंद शिकागो में 9 सितंबर 1893 को पहुंचे और 27 सितंबर 1893 को महासभा समाप्त होने के बाद ही वापस लौटे। इस प्रकार, स्वामी विवेकानंद शिकागो में लगभग 18 दिन तक रहे।

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स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म महासभा (World's Parliament of Religions) में कई महत्वपूर्ण प्रवचन दिए। यहाँ उनके कुछ प्रमुख प्रवचनों की तारीखें और मुख्य बिंदु दिए गए हैं:

  1. 11 सितंबर 1893: स्वामी विवेकानंद ने महासभा के उद्घाटन सत्र में अपना प्रसिद्ध भाषण दिया, जिसमें उन्होंने "मुझे एक अमरीकी के रूप में आपको धन्यवाद देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है" के साथ शुरुआत की। इस भाषण में उन्होंने सभी धर्मों की एकता और सहिष्णुता की बात की।

  2. 19 सितंबर 1893: स्वामी विवेकानंद ने "भविष्य की धार्मिकता" विषय पर अपना प्रवचन दिया। इसमें उन्होंने भारतीय धार्मिकता और दर्शन का परिचय दिया और धर्म की सार्वभौम प्रकृति पर जोर दिया।

  3. 26 सितंबर 1893: स्वामी विवेकानंद ने "धर्म और समाज" पर एक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने धार्मिक और सामाजिक सुधारों की आवश्यकता को बताया और समाज में धर्म के योगदान पर चर्चा की।

स्वामी विवेकानंद के ये प्रवचन धर्म और समाज के संदर्भ में उनके विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करते हैं और उनके द्वारा प्रस्तुत धार्मिक सहिष्णुता और मानवता के संदेश को उजागर करते हैं।

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स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। उनका जन्मस्थान कोलकाता (तब कलकत्ता), भारत था। उनका जन्म नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। वे एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे, और उनके पिता, विजयकृष्ण दत्त, एक प्रसिद्ध वकील और उनके माता-पिता धार्मिक और सांस्कृतिक परिवेश के व्यक्ति थे।

स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन की शुरुआत में ही महान शैक्षिक और धार्मिक उत्साह दिखाया। वे युवा अवस्था में ही श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बने और उन्होंने भारतीय संस्कृति और वेदांत के अद्वितीय शिक्षाओं को समझा। स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन के दौरान भारतीय संस्कृति और धर्म को पश्चिमी दुनिया में प्रस्तुत किया और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मंच पर मान्यता प्राप्त की।

उनका योगदान आज भी प्रेरणादायक है, और उनके विचार और शिक्षाएं आज भी दुनिया भर में प्रभावी हैं।

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स्वामी विवेकानंद के बारे में कहा जाता है कि उनके पास एक विशेष प्रकार का मस्तिष्क और मानसिक क्षमता थी, जो उन्हें उनके समय के अन्य व्यक्तियों से अलग बनाती थी। उनके बारे में यह कहा गया है:

  1. अति उच्च बौद्धिक क्षमता: स्वामी विवेकानंद की बौद्धिक क्षमता और गहरी समझ ने उन्हें जटिल धार्मिक और दार्शनिक विषयों पर विचार करने में सक्षम बनाया। उनकी शिक्षाएँ और विचार पूरी दुनिया में व्यापक रूप से स्वीकार किए गए हैं।

  2. धार्मिक और दार्शनिक ज्ञान: उन्होंने वेदांत, योग, और भारतीय धर्मग्रंथों का गहन अध्ययन किया था। उनके विचार और शिक्षाएं धार्मिक सहिष्णुता, मानवता, और आत्मज्ञान पर आधारित थीं।

  3. प्रेरणादायक संप्रेषण क्षमता: स्वामी विवेकानंद की प्रभावी संप्रेषण क्षमता और भाषण कला ने उन्हें एक प्रमुख नेता और प्रेरक वक्ता बनाया। उनका भाषण, विशेषकर 1893 में शिकागो के विश्व धर्म महासभा में, आज भी प्रेरणा का स्रोत है।

  4. विपरीत परिस्थितियों में भी संतुलन बनाए रखने की क्षमता: वे विपरीत परिस्थितियों में भी संतुलित और धैर्यपूर्ण रहते थे, जो उनके मानसिक और भावनात्मक शक्ति को दर्शाता है।

स्वामी विवेकानंद की मानसिक क्षमता और उनके विशेष विचारधारा के कारण उन्हें एक महान विचारक, धार्मिक नेता, और प्रेरणादायक व्यक्ति माना जाता है।


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स्वामी विवेकानंद (नरेंद्रनाथ दत्त) का पारिवारिक संबंध उनकी जीवन कहानी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है:

  1. पिता: उनके पिता का नाम विजयकृष्ण दत्त था। वे एक प्रमुख वकील और एक समर्पित ब्राह्मण थे, जो भारतीय संस्कृति और धर्म के प्रति गहरी श्रद्धा रखते थे। विजयकृष्ण दत्त एक धार्मिक और प्रगतिशील व्यक्ति थे, जिनकी विचारधारा का प्रभाव स्वामी विवेकानंद के जीवन पर पड़ा।

  2. माँ: स्वामी विवेकानंद की माँ का नाम भुवनेश्वर दत्त था। वे एक धार्मिक और समर्पित महिला थीं, जिन्होंने अपने बच्चों को उच्च नैतिकता और धार्मिकता का पाठ पढ़ाया। उनका स्वामी विवेकानंद की जीवन पर गहरा प्रभाव था और वे उनके लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा स्रोत थीं।

  3. भाई-बहन:

    • भाई: स्वामी विवेकानंद के एक बड़े भाई थे जिनका नाम अजय कुमार दत्त था। वे भी एक धार्मिक व्यक्ति थे और स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित थे।
    • बहन: उनकी एक बहन का नाम प्रभात किशोरी था। वे भी धार्मिक और शिक्षित थीं।

स्वामी विवेकानंद के परिवार ने उन्हें एक सुसंस्कृत और धार्मिक वातावरण प्रदान किया, जिसने उनके जीवन और विचारधारा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके परिवार के सदस्य भी उनके धार्मिक और दार्शनिक विचारों के समर्थक थे।

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स्वामी विवेकानंद के जीवन में एक समय ऐसा भी आया जब उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई थी। उनके पिता विजयकृष्ण दत्त के निधन के बाद, परिवार को गंभीर आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

मुख्य बिंदु:

  1. पिता की मृत्यु के बाद: जब स्वामी विवेकानंद के पिता का निधन हुआ, उस समय परिवार पर भारी कर्ज था और आय का कोई स्थायी स्रोत नहीं था। इस कारण परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई।

  2. भरण-पोषण की कठिनाइयाँ: परिवार के पास खाने-पीने और रोज़मर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे। नरेंद्र (स्वामी विवेकानंद) को और उनके परिवार को कठिन परिस्थितियों में जीवन व्यतीत करना पड़ा।

  3. स्वामी विवेकानंद की संघर्षशीलता: इस कठिन समय में स्वामी विवेकानंद ने कई बार नौकरी की तलाश की, लेकिन उन्हें कोई स्थायी रोजगार नहीं मिल पाया। इसके बावजूद, उन्होंने अपने धर्म और आध्यात्मिकता के प्रति समर्पण नहीं छोड़ा और अपने गुरुदेव, श्री रामकृष्ण परमहंस के मार्गदर्शन में आगे बढ़ते रहे।

  4. साधुओं जैसा जीवन: इन आर्थिक कठिनाइयों के चलते, स्वामी विवेकानंद ने सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर साधुओं जैसा जीवन अपनाया। वे देशभर में घूमे और भारतीय जनता की दयनीय स्थिति को देखा, जिससे उन्हें अपने देशवासियों के उत्थान के लिए कार्य करने की प्रेरणा मिली।

स्वामी विवेकानंद ने कठिनाइयों के बावजूद अपनी आंतरिक शक्ति, धैर्य और समर्पण के बल पर न केवल अपने जीवन को दिशा दी, बल्कि पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति और वेदांत का प्रचार किया। उनकी जीवन गाथा संघर्ष, त्याग और अदम्य आत्मबल की प्रेरणा देती है।

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स्वामी विवेकानंद (नरेंद्रनाथ दत्त) और उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के बीच का मिलन भारतीय धार्मिक और आध्यात्मिक इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। इस मिलन की कहानी दिलचस्प और प्रेरणादायक है:

प्रारंभिक जिज्ञासा और प्रश्न

नरेंद्रनाथ दत्त (स्वामी विवेकानंद) एक अत्यंत जिज्ञासु और प्रखर बुद्धि के व्यक्ति थे। उन्होंने कई धार्मिक और दार्शनिक पुस्तकों का अध्ययन किया था, और वे जीवन और ईश्वर के बारे में गहरे प्रश्नों के उत्तर की खोज में थे। उनका मन सदैव यह प्रश्न करता था कि क्या ईश्वर का अस्तित्व है, और यदि है, तो क्या किसी ने उसे प्रत्यक्ष रूप से देखा है?

रामकृष्ण परमहंस से परिचय

नरेंद्रनाथ के एक परिचित प्रोफेसर, विलियम हेस्टिंग्स, ने उन्हें दक्षिणेश्वर स्थित रामकृष्ण परमहंस से मिलने का सुझाव दिया। रामकृष्ण परमहंस उस समय एक प्रसिद्ध संत थे और उनके बारे में कहा जाता था कि वे ईश्वर के प्रत्यक्ष अनुभव में सक्षम हैं।

पहली मुलाकात

नरेंद्रनाथ की रामकृष्ण परमहंस से पहली मुलाकात 1881 में दक्षिणेश्वर में हुई। इस मुलाकात के दौरान नरेंद्र ने अपने सामान्य सवाल को सीधे रामकृष्ण से पूछा:

"क्या आपने ईश्वर को देखा है?"

रामकृष्ण परमहंस का उत्तर था:

"हाँ, मैंने ईश्वर को देखा है, वैसे ही जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूँ, और उससे भी अधिक स्पष्ट रूप से।"

रामकृष्ण के इस उत्तर ने नरेंद्रनाथ को गहरे प्रभावित किया। वह उत्तर उनके पिछले अनुभवों से अलग था, और रामकृष्ण की सादगी और ईमानदारी ने उन्हें मंत्रमुग्ध कर दिया।

संबंध का गहरा होना

इसके बाद नरेंद्रनाथ ने रामकृष्ण परमहंस के पास आना-जाना शुरू किया। रामकृष्ण ने नरेंद्रनाथ की गहन जिज्ञासा, प्रखर बुद्धि, और आध्यात्मिकता के प्रति उनके समर्पण को पहचाना। धीरे-धीरे, रामकृष्ण ने नरेंद्रनाथ को अपनी विशेष शिक्षाओं और अनुभवों से परिचित कराया और उन्हें यह समझाया कि ईश्वर की प्राप्ति ही जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है।

शिष्य-गुरु संबंध

रामकृष्ण परमहंस और नरेंद्रनाथ के बीच एक गहरा और आध्यात्मिक संबंध विकसित हुआ। रामकृष्ण ने नरेंद्रनाथ को अपना प्रमुख शिष्य बनाया और उन्हें ईश्वर की प्राप्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। रामकृष्ण की शिक्षाओं ने नरेंद्रनाथ के जीवन को एक नई दिशा दी और उन्हें स्वामी विवेकानंद के रूप में परिवर्तित किया, जो बाद में वेदांत और योग के महान प्रचारक बने।

अंतिम प्रभाव

रामकृष्ण परमहंस के साथ बिताए समय ने स्वामी विवेकानंद को न केवल आध्यात्मिक रूप से, बल्कि मानसिक और सामाजिक रूप से भी विकसित किया। रामकृष्ण के अद्वितीय प्रेम, ज्ञान और करुणा ने नरेंद्रनाथ को आत्मिक ज्ञान की गहराई में डुबो दिया और उन्हें एक महान आध्यात्मिक नेता बना दिया।

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श्री रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद (नरेंद्रनाथ दत्त) को भी ईश्वर के दर्शन कराए। यह घटना स्वामी विवेकानंद के आध्यात्मिक जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ थी। रामकृष्ण परमहंस का उद्देश्य था कि वे नरेंद्रनाथ को ईश्वर का प्रत्यक्ष अनुभव कराएं और उन्हें यह समझाएं कि ईश्वर केवल एक दर्शन या सिद्धांत नहीं है, बल्कि एक जीवंत वास्तविकता है जिसे अनुभव किया जा सकता है।

ईश्वर के दर्शन का अनुभव

श्री रामकृष्ण परमहंस ने नरेंद्रनाथ को कई तरह की आध्यात्मिक साधनाओं और ध्यान का मार्गदर्शन दिया। एक दिन, जब नरेंद्रनाथ रामकृष्ण के पास ध्यान में बैठे थे, रामकृष्ण ने उन्हें अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव का अनुभव कराया। इस अनुभव में नरेंद्रनाथ ने अद्वितीय आनंद और शांति का अनुभव किया, जो साधारण जागरूकता से परे था। इस अनुभव के दौरान नरेंद्रनाथ को ऐसा लगा जैसे समस्त ब्रह्मांड एक ही सत्ता के प्रकाश से भर गया हो।

अनुभव का प्रभाव

इस अनुभव ने नरेंद्रनाथ (स्वामी विवेकानंद) की संपूर्ण सोच को बदल दिया। उन्होंने यह महसूस किया कि ईश्वर एक सजीव सत्य है जिसे केवल विचारों में नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष अनुभव में भी महसूस किया जा सकता है। यह अनुभव उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहा।

गुरु-शिष्य संबंध

रामकृष्ण परमहंस के द्वारा किए गए इस अद्वितीय अनुभव ने स्वामी विवेकानंद को पूरी तरह से ईश्वर के प्रति समर्पित कर दिया और उन्होंने अपना जीवन ईश्वर के सेवा और मानवता के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। रामकृष्ण परमहंस का स्वामी विवेकानंद के जीवन पर यह गहरा प्रभाव उनके जीवन भर बना रहा और उन्होंने दुनिया भर में भारतीय संस्कृति, वेदांत, और योग का प्रचार किया।

इस प्रकार, रामकृष्ण परमहंस ने न केवल स्वामी विवेकानंद को ईश्वर के दर्शन कराए, बल्कि उन्हें एक महान आध्यात्मिक नेता के रूप में भी विकसित किया, जो बाद में संपूर्ण विश्व में भारतीय आध्यात्मिकता का प्रचार करने वाले प्रमुख व्यक्तित्व बने।

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स्वामी विवेकानंद मूर्ति पूजा के समर्थक थे, लेकिन उनका दृष्टिकोण इस विषय पर गहरा और व्यापक था। वे इसे एक महत्वपूर्ण साधना का हिस्सा मानते थे, जो लोगों को ईश्वर की ओर केंद्रित करती है और उनके आध्यात्मिक विकास में सहायक होती है।

मूर्ति पूजा का समर्थन

स्वामी विवेकानंद का मानना था कि मूर्ति पूजा एक साधना का साधन है जो ईश्वर को प्रतीकात्मक रूप में समझने में मदद करती है। उन्होंने कहा कि मूर्ति पूजा का उद्देश्य व्यक्ति के मन को एकाग्र करना और ध्यान के माध्यम से ईश्वर का अनुभव करना है। वे इसे एक ऐसी प्रक्रिया मानते थे, जिससे सामान्य व्यक्ति, जो अमूर्त ईश्वर को समझने में कठिनाई महसूस करता है, मूर्ति के माध्यम से ईश्वर की उपासना कर सकता है।

विवेकानंद का दृष्टिकोण

स्वामी विवेकानंद ने अपने विचारों में स्पष्ट किया कि मूर्ति पूजा का सही अर्थ क्या है। उनके अनुसार:

  1. प्रतीकात्मकता: मूर्ति पूजा एक प्रतीकात्मक प्रक्रिया है। मूर्ति स्वयं ईश्वर नहीं है, बल्कि ईश्वर के गुणों का प्रतीक है। यह भक्त को ईश्वर के रूप को समझने और उनकी आराधना करने में सहायता करती है।

  2. आध्यात्मिक साधना: मूर्ति पूजा को स्वामी विवेकानंद एक आध्यात्मिक साधना के रूप में देखते थे। वे कहते थे कि जब व्यक्ति ध्यान, भक्ति और श्रद्धा के साथ मूर्ति की पूजा करता है, तो वह अंततः ईश्वर के अमूर्त स्वरूप को समझने में सक्षम हो जाता है।

  3. अधिकार और विचार की परिपक्वता: स्वामी विवेकानंद मानते थे कि हर व्यक्ति की सोच और आध्यात्मिक विकास के स्तर अलग-अलग होते हैं। मूर्ति पूजा उन लोगों के लिए उपयोगी हो सकती है, जो ईश्वर को एक साकार रूप में समझना चाहते हैं। जैसे-जैसे व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होता है, वह मूर्ति के परे जाकर ईश्वर के निराकार स्वरूप को भी समझने लगता है।

मूर्ति पूजा का वास्तविक अर्थ

स्वामी विवेकानंद ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति मूर्ति को सिर्फ पत्थर या धातु मानता है, तो वह गलत है। परंतु यदि वह उसे ईश्वर के प्रतीक के रूप में देखता है और उसकी भक्ति करता है, तो यह पूजा उसकी आध्यात्मिक यात्रा में सहायक होती है।

स्वामी विवेकानंद के विचारों में मूर्ति पूजा का महत्व था, लेकिन वे यह भी मानते थे कि व्यक्ति को अंततः ईश्वर के अमूर्त और सार्वभौमिक स्वरूप की ओर बढ़ना चाहिए। उनके लिए मूर्ति पूजा एक प्रारंभिक साधना थी, जो भक्त को गहरे आध्यात्मिक अनुभवों की ओर ले जाती है।

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स्वामी विवेकानंद का दृष्टिकोण हिंदू राष्ट्र के संदर्भ में व्यापक और समग्र था। उन्होंने हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति को एक गहरे और सहिष्णु दृष्टिकोण से देखा, जो न केवल धार्मिक सहिष्णुता बल्कि मानवता के कल्याण पर आधारित था।

स्वामी विवेकानंद का हिंदू धर्म पर दृष्टिकोण:

  1. धार्मिक सहिष्णुता और एकता: स्वामी विवेकानंद का मानना था कि हिंदू धर्म का सार इसकी सहिष्णुता और विभिन्न धार्मिक विचारों को स्वीकार करने की क्षमता में है। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म न केवल अपने अनुयायियों के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण है कि किस प्रकार विविधता में एकता को बनाए रखा जा सकता है। वे अक्सर कहते थे कि:

    • "सभी धर्म सत्य के विभिन्न मार्ग हैं।"
  2. राष्ट्रीय एकता और संस्कृति: स्वामी विवेकानंद का मानना था कि भारत की संस्कृति और सभ्यता का आधार हिंदू धर्म है, और इसे पुनर्जीवित करके ही भारत का पुनर्निर्माण किया जा सकता है। उन्होंने भारतीयों को अपने धर्म और संस्कृति पर गर्व करने और इसे विश्व के सामने प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया। उनका मानना था कि हिंदू धर्म का आदर्श मानवता की सेवा और सभी के कल्याण में है।

  3. धर्मनिरपेक्षता और सभी धर्मों का सम्मान: स्वामी विवेकानंद ने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि हिंदू धर्म किसी भी प्रकार के संकीर्णता या कट्टरता का समर्थक नहीं है। उन्होंने सभी धर्मों का सम्मान किया और कहा कि भारत को एक ऐसा राष्ट्र बनना चाहिए जहाँ सभी धर्मों का समान आदर हो और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने की स्वतंत्रता हो।

  4. आध्यात्मिकता और राष्ट्रीयता: स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म के आध्यात्मिक मूल्यों को राष्ट्रीयता के साथ जोड़कर देखा। उनका मानना था कि भारतीय राष्ट्र का निर्माण केवल भौतिक विकास से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागृति से हो सकता है। उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा उसकी आध्यात्मिकता में निहित है, और जब तक भारतीय इस आत्मा को नहीं समझेंगे, तब तक राष्ट्र का उत्थान संभव नहीं है।

हिंदू राष्ट्र के संदर्भ में:

स्वामी विवेकानंद ने कभी भी "हिंदू राष्ट्र" को संकीर्ण और कट्टरपंथी दृष्टिकोण से नहीं देखा। उनके लिए, हिंदू राष्ट्र का मतलब एक ऐसा समाज था जो आध्यात्मिक, सहिष्णु, और सभी धर्मों को आदर देने वाला हो। उन्होंने कहा कि भारत की शक्ति उसकी विविधता और सहिष्णुता में है, और इसे बनाए रखना ही सच्चे अर्थों में एक "हिंदू राष्ट्र" होगा।

उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू धर्म की सबसे बड़ी विशेषता उसकी सार्वभौमिकता है, और भारत को एक ऐसा राष्ट्र बनना चाहिए जहाँ सभी लोग, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति, या पंथ के हों, शांतिपूर्ण और सम्मानजनक तरीके से जीवन जी सकें।

स्वामी विवेकानंद का "हिंदू राष्ट्र" का विचार एक समावेशी, सहिष्णु और आध्यात्मिक रूप से जागरूक राष्ट्र का था, जो विश्व के लिए एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत कर सके।

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आज के संदर्भ में स्वामी विवेकानंद के विचारों का आकलन करते समय हमें यह समझना होगा कि उन्होंने जो भारत का आदर्श चित्रण किया था, वह एक ऐसी परिकल्पना थी जहाँ सांस्कृतिक, धार्मिक, और आध्यात्मिक मूल्यों का पालन होता है। उनके दृष्टिकोण में भारत की सबसे बड़ी ताकत उसकी सहिष्णुता, विविधता में एकता, और सभी धर्मों का सम्मान करना है। लेकिन आज के समय में देश के सामने जो चुनौतियाँ हैं, वे निश्चित रूप से जटिल और बहुआयामी हैं।

1. आंतरिक तनाव और सुरक्षा चुनौतियाँ:

  • भारत, एक बहुसांस्कृतिक और बहुधर्मी देश होने के कारण, विभिन्न आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना कर रहा है। आज, धार्मिक और सांप्रदायिक तनाव बढ़ते जा रहे हैं, जो देश की आंतरिक शांति और स्थिरता को खतरे में डाल सकते हैं। अल्पसंख्यक समुदाय और बहुसंख्यक समुदाय के बीच में आपसी विश्वास और समरसता की कमी बढ़ रही है, जिससे विभाजन और कटुता उत्पन्न हो रही है।
  • बाहरी सुरक्षा चुनौतियाँ भी गंभीर हैं। चारों ओर से दुश्मन देशों द्वारा भारत को कमजोर करने के प्रयास हो रहे हैं, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है।

2. स्वामी विवेकानंद के विचारों का आज के संदर्भ में महत्व:

  • सहिष्णुता और एकता का महत्व: स्वामी विवेकानंद का यह मानना था कि भारत की शक्ति उसकी सहिष्णुता में है। आज के समय में, धार्मिक सहिष्णुता और आपसी विश्वास की बहाली की अत्यधिक आवश्यकता है। इसे हासिल करने के लिए समाज में संवाद और शिक्षा का प्रसार होना चाहिए, ताकि विभिन्न समुदायों के बीच की गलतफहमियाँ दूर हो सकें।
  • आध्यात्मिकता और नैतिकता: विवेकानंद का यह भी मानना था कि भारतीय समाज की आध्यात्मिकता और नैतिकता को बनाए रखना बेहद जरूरी है। इस कठिन समय में, हमें अपने धार्मिक और नैतिक मूल्यों को बनाए रखने के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास पर ध्यान देना होगा।
  • देशभक्ति और सेवा भावना: आज के समय में, स्वामी विवेकानंद की देशभक्ति की भावना को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। उन्होंने युवाओं को समाज और राष्ट्र की सेवा के लिए प्रेरित किया। यदि देश के नागरिक मिलकर काम करें, तो आंतरिक और बाहरी दोनों खतरों का सामना किया जा सकता है।

3. क्या आज के संदर्भ में आदर्श "हिंदू राष्ट्र" संभव है?:

  • समावेशिता का दृष्टिकोण: आज के समय में, "हिंदू राष्ट्र" का कोई भी विचार तभी सार्थक हो सकता है जब यह समावेशी हो और सभी धर्मों और समुदायों को साथ लेकर चले। अगर यह विचार सिर्फ बहुसंख्यक समुदाय के अधिकारों और हितों पर केंद्रित होगा, तो यह देश में और अधिक विभाजन और तनाव को जन्म दे सकता है।
  • राष्ट्र की सुरक्षा और स्थिरता: देश की सुरक्षा और स्थिरता के लिए यह आवश्यक है कि सभी नागरिक अपने कर्तव्यों को निभाएँ और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखें। बाहरी खतरों से निपटने के लिए एकता, अनुशासन, और सशक्त सुरक्षा व्यवस्था जरूरी है। लेकिन यह भी आवश्यक है कि आंतरिक शांति और सद्भाव बनाए रखा जाए ताकि कोई भी बाहरी ताकत हमारे देश की एकता को भंग न कर सके।

निष्कर्ष:

स्वामी विवेकानंद के विचार आज भी प्रासंगिक हैं, लेकिन उन्हें आज के जटिल संदर्भ में लागू करने के लिए हमें एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। धार्मिक सहिष्णुता, आध्यात्मिकता, और राष्ट्रीय एकता के सिद्धांतों को अपनाते हुए, हम एक ऐसा राष्ट्र बना सकते हैं जो आंतरिक और बाहरी दोनों खतरों का सामना कर सके।

वर्तमान चुनौतियों का समाधान स्वामी विवेकानंद की शिक्षा में निहित है, लेकिन इसके लिए हर नागरिक को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग रहना होगा, और समग्र विकास और सुरक्षा के लिए मिलकर काम करना होगा।

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स्वामी विवेकानंद का अंतिम संदेश उनके जीवन के अंतिम दिनों में दिए गए उनके विचारों और शिक्षाओं का सार था। उनके अंतिम संदेशों में भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा, मानवता की सेवा, और आध्यात्मिक जागरूकता पर जोर दिया गया था।

अंतिम संदेश का सार:

  1. आत्मबल और जागृति: स्वामी विवेकानंद ने अपने अंतिम दिनों में युवाओं से कहा कि वे आत्मबल और आत्मविश्वास को विकसित करें। उन्होंने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर असीम शक्तियाँ निहित हैं, और उन्हें जागरूक होकर अपने जीवन को महान बनाना चाहिए। उनका एक प्रसिद्ध उद्धरण है:

    • "उठो, जागो, और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।"
  2. मानव सेवा: स्वामी विवेकानंद का मानना था कि सच्ची भक्ति और धर्म का सार मानवता की सेवा में है। उन्होंने अपने अनुयायियों को सिखाया कि भगवान की पूजा केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि गरीबों, जरूरतमंदों और पीड़ितों की सेवा में की जानी चाहिए। उनका मानना था कि "दरिद्र नारायण" की सेवा ही सच्ची पूजा है।

  3. धर्म और एकता: स्वामी विवेकानंद ने भारतीय समाज के पुनर्निर्माण और धार्मिक एकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारत का भविष्य तभी उज्ज्वल होगा जब लोग धर्म के सच्चे अर्थ को समझेंगे और सभी धर्मों का आदर करेंगे। उन्होंने एकता के महत्व को समझाया और कहा कि "सभी धर्म सच्चे हैं" और "सभी रास्ते एक ही मंजिल की ओर ले जाते हैं।"

  4. भारतीय संस्कृति का गौरव: स्वामी विवेकानंद ने अपने अंतिम संदेशों में भारतीय संस्कृति, वेदांत और योग की महत्ता को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति का संदेश विश्व के लिए महत्वपूर्ण है, और हमें इसे गर्व से अपनाना चाहिए और पूरी दुनिया में फैलाना चाहिए।

स्वामी विवेकानंद का अंतिम कथन:

स्वामी विवेकानंद का अंतिम कथन था:

  • "भारत का भविष्य उज्ज्वल है। वह दिन दूर नहीं जब यह भूमि विश्व की महानतम शक्तियों में से एक होगी।"

4 जुलाई 1902 को, स्वामी विवेकानंद ने महासमाधि ली। उन्होंने अपने अंतिम समय में गंगा के तट पर बेलूर मठ में ध्यान किया और अपने कमरे में जाकर ध्यान की अवस्था में ही शरीर त्याग दिया। उनके अंतिम शब्द और संदेश आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं।

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स्वामी विवेकानंद के कुछ प्रसिद्ध उद्धरण, जो आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं, इस प्रकार हैं:

  1. "उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।"

  2. "एक विचार लो। उस विचार को अपना जीवन बना लो – उसके बारे में सोचो, उसके सपने देखो, उस विचार को जियो। मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के प्रत्येक हिस्से को उस विचार से भर दो और बाकी सभी विचारों को किनारे रख दो। यही सफल होने का तरीका है।"

  3. "तुम्हें अंदर से बाहर की ओर विकसित होना चाहिए। कोई तुम्हें सिखा नहीं सकता, कोई तुम्हें आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुम्हारी आत्मा के अलावा कोई और गुरु नहीं है।"

  4. "एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।"

  5. "जिस क्षण मैं यह महसूस करता हूँ कि भगवान हर एक मानव शरीर में विद्यमान हैं, जिस क्षण मैं मनुष्य के सामने श्रद्धा से खड़ा होता हूँ और उसी क्षण मैं भगवान के सामने खड़ा होता हूँ – उसी क्षण मैं बंधनों से मुक्त हो जाता हूँ, हर चीज जो मुझे बांधती है, टूट जाती है, और मैं मुक्त हो जाता हूँ।"

  6. "सच्चा ज्ञान खुद को जानने में है, दूसरों को जानने में नहीं।"

  7. "किसी की निंदा मत करो: यदि आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो अवश्य बढ़ाएं। यदि आप मदद नहीं कर सकते, तो अपने हाथ जोड़ें, अपने भाइयों को आशीर्वाद दें, और उन्हें उनके मार्ग पर जाने दें।"

  8. "तुम विश्वास के बिना कुछ नहीं कर सकते।"

  9. "मनुष्य जितना सोचता है, उससे बढ़कर होता है।"

  10. "जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक और निर्भीक होकर लोगों से कहो – उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, परंतु सत्य तो कहो ही।"

  11. "विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।" 

  12. "ताकत ही जीवन है, कमजोरी मृत्यु है। विस्तार ही जीवन है, संकुचन मृत्यु है। प्रेम ही जीवन है, द्वेष मृत्यु है।"

  13. "जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है; यह अग्नि का दोष नहीं है।"

  14. "यदि आप खुद में विश्वास नहीं करते हैं, तो आप कभी भी भगवान में विश्वास नहीं कर सकते।"

  15. "यह जीवन अल्पकालिक है, संसार की विलासिताएं क्षणिक हैं, लेकिन जो दूसरों के लिए जीते हैं, वे वास्तव में जीवित रहते हैं।"

  16. "हर आत्मा ईश्वर की संभावित है।"

  17. "कुछ मत पूछो, बदले में कुछ मत मांगो, जो दिया गया है उसे स्वीकार करो, और इसे भगवान के लिए काम करो।"

  18. "तुम्हें अपने भीतर से ही शक्ति को बाहर लाना होगा, कोई तुम्हें शक्ति नहीं दे सकता।"

  19. "तुम्हारा क्या अधिकार है दूसरों की निंदा करने का? उनका कौन सा दोष है जो तुम्हारे अंदर नहीं है?"

  20. "जितना बड़ा संघर्ष होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी।"

  21. "एक समय में एक ही काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो। बाकी सब कुछ भूल जाओ।"

  22. "जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते, तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।"

  23. "जो कुछ भी तुम सोचते हो कि तुम बनोगे। यदि तुम खुद को कमजोर समझते हो, तो तुम कमजोर बनोगे; यदि तुम खुद को ताकतवर समझते हो, तो तुम ताकतवर बनोगे।"

  24. "सपने देखो और उन्हें साकार करने का साहस करो।"

  25. "किसी चीज से मत डरो। तुम अद्भुत काम करोगे। यह निडरता ही है जो क्षण भर में परम आनंद ला सकती है।"

  26. "समाज को बदलने का विचार मूर्खता है। वह व्यक्ति मूर्ख है जो समाज को सुधारने की योजना बनाता है। समाज को सुधारने का एकमात्र तरीका यह है कि आप व्यक्तिगत रूप से खुद को सुधारें।"

  27. "दुनिया एक महान व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।"

  28. "यदि आप संघर्ष करते हैं, तो आप उठेंगे, यदि आप संघर्ष नहीं करते, तो आप गिर जाएंगे।"

  29. "ध्यान और ज्ञान में कोई अंतर नहीं है। ज्ञान ध्यान है और ध्यान ज्ञान है।"

  30. "उठो, जागो, और तब तक मत रुको जब तक तुम अपना लक्ष्य प्राप्त न कर लो।"

  31. "सच्ची पूजा सिर्फ आस्था और सच्चे कर्म से होती है।"

  32. "जब आप दुनिया से अपनी अपेक्षाएँ कम कर देंगे, तो आपकी खुशी आपके पास आ जाएगी।"

  33. "मनुष्य को हमेशा यह समझना चाहिए कि उसे अपने भीतर आत्मा से संबंधित वस्तुओं को ही समझना है, और इससे भी बढ़कर, उसे समझना चाहिए कि उसे जीवन के वास्तविक अर्थ को जानना है।"

  34. "धर्म एक विज्ञान है और उसे खोजने का कोई भी प्रयास व्यर्थ नहीं जाएगा।"

  35. "हर व्यक्ति को एक मूल्यवान जीवन जीना चाहिए। अपनी शक्ति को पहचानो, और उसे अपनी पूर्णता में इस्तेमाल करो।"

  36. "जितना बड़ा संघर्ष होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी।"

  37. "तुम्हारी समस्याएँ कभी भी स्थायी नहीं होतीं, वे तुम्हारी मेहनत और धैर्य से हल हो सकती हैं।"

  38. "जो हम आज हैं, वह हमारे विचारों का परिणाम है। कल हम वही होंगे जो हम आज सोचते हैं।"

  39. "खुद को जानना सबसे बड़ा ज्ञान है। दूसरों को जानना एक सहायक विज्ञान है।"

  40. "सच्चा धर्म वही है जो मानवता के लिए है।"

  1. "खुद पर विश्वास करो और तुम दुनिया को हिला सकते हो।"

  2. "अधिकतर लोग अपने आप को जानने के बजाय दूसरों को जानने में समय बर्बाद करते हैं।"

  3. "समस्या और उसके समाधान के बीच में कभी भी संदेह मत करो। संदेह और भ्रम से भरा जीवन केवल असफलता की ओर ले जाता है।"

  4. "सच्चे मनुष्य वे होते हैं जो अपने आप को पहचानते हैं और अपनी आत्मा के साथ जुड़ते हैं।"

  5. "स्वतंत्रता किसी को दी नहीं जाती, इसे छीनना होता है।"

  6. "धर्म आत्मा के लिए है, जिसे व्यक्ति केवल स्वाध्याय और अनुभव के माध्यम से जान सकता है।"

  7. "हर व्यक्ति का दिल एक जैसा होता है, लेकिन उसके आचार-व्यवहार अलग-अलग होते हैं।"

  8. "जो भी तुम सोचोगे, वही बनोगे। सोचने के तरीके से ही तुम्हारी सफलता या असफलता तय होती है।"

  9. "सच्ची शक्ति आत्म-स्वीकृति और आत्म-संयम में है।"

  10. "जीवन की सबसे बड़ी शिक्षा यही है कि हम कभी हार न मानें।"

  11. "हमें अपने आत्मा के भीतर देखना होगा, तभी हम सच्ची स्वतंत्रता और शक्ति का अनुभव कर सकते हैं।"

  12. "जो सच्चा ज्ञान है, वह केवल बाहरी दुनिया से नहीं, बल्कि खुद के भीतर से आता है।"

  13. "निराशा को दूर करने का एकमात्र तरीका है अपनी शक्ति और क्षमता पर विश्वास करना।"

  14. "मूल्य और नैतिकता ही जीवन को सही दिशा देते हैं।"

  15. "जीवन में सबसे बड़ा आनंद तब आता है जब आप अपनी पूरी क्षमता को पहचानते हैं और उसे लागू करते हैं।"

  16. "किसी भी स्थिति में आत्म-नियंत्रण और धैर्य बनाए रखना चाहिए।"

  17. "ध्यान और साधना के बिना कोई भी सच्चा ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता।"

  18. "जो व्यक्ति आत्मा के साथ जुड़ जाता है, वह कभी भी अकेला नहीं रहता।"

  19. "कर्मों की गुणवत्ता से ही हमारा भविष्य निर्धारित होता है।"

  20. "शक्ति और साहस के बिना, कोई भी महान कार्य पूरा नहीं हो सकता।"

ये उद्धरण स्वामी विवेकानंद की गहन सोच, आत्म-विश्वास, और जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जो आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।


नोट :- विभिन्न धर्मगुरुओं के प्रवचनों, लेखों, आध्यात्मिक चर्चाओं, इंटरनेट सर्च के आधार पर यह लेख लिखा गया है, इसमें मेरा अपना कुछ भी नहीं है, सभी शब्द दूसरों के हैं।


- बिमलेंद्र झा


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