सेक्युलर शब्द का उपयोग: तुष्टिकरण या समानता का मार्ग?

 

सेक्युलर शब्द का उपयोग: तुष्टिकरण या समानता का मार्ग?

भारतीय संविधान की उद्देशिका में 42वें संशोधन (1976) के माध्यम से "सेक्युलर" शब्द जोड़ा गया, जिसका उद्देश्य भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित करना था। इसका मूल भाव यह था कि राज्य का कोई धर्म नहीं होगा, और सभी धर्मों को समान अधिकार और सम्मान मिलेगा। हालांकि, समय के साथ इस शब्द का व्यवहारिक अर्थ और उपयोग संदिग्ध हो गया है। आज यह प्रश्न उठता है कि "सेक्युलर" शब्द का वास्तविक उद्देश्य क्या है, और क्या यह अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है?

दो बार धर्म के आधार पर विभाजन और सेक्युलर का स्थान

ऐतिहासिक रूप से देखें, तो भारत का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ।

  1. पहला विभाजन (1947): भारत और पाकिस्तान का निर्माण, जिसमें पाकिस्तान को मुस्लिम बहुल राष्ट्र और भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया।
  2. दूसरा विभाजन (1971): बांग्लादेश का निर्माण, जो भी मुस्लिम बहुल था।

इन घटनाओं के बावजूद, "सेक्युलर" शब्द का भार केवल भारत ने उठाया। सवाल यह है कि जिन समुदायों ने दो बार अपने धर्म के आधार पर अलग राष्ट्र बनाए, क्या उनके लिए "सेक्युलर" शब्द का कोई महत्व है?

धर्म के आधार पर विभाजन के बाद जो हिंदू बहुल भारत बचा, उसे "सेक्युलर" बनाए रखने की आवश्यकता क्यों पड़ी? जब भारत की 80% से अधिक जनसंख्या हिंदू है, तो क्या "सेक्युलर" शब्द उनके सांस्कृतिक और धार्मिक अधिकारों को सीमित करता है?

सेक्युलर शब्द और तुष्टिकरण की राजनीति

आज, "सेक्युलर" शब्द का उपयोग समानता के बजाय तुष्टिकरण की राजनीति के लिए किया जा रहा है।

  1. वक्फ बोर्ड और धार्मिक संपत्तियां: एक ओर वक्फ बोर्ड जैसी संस्थाएं विशेष समुदायों को करोड़ों की संपत्तियों का अधिकार देती हैं, जबकि दूसरी ओर मंदिरों की संपत्ति सरकारी नियंत्रण में रहती है।
  2. धार्मिक गतिविधियों का विशेषाधिकार:
    • मस्जिदों से अज़ान के लिए लाउडस्पीकर की अनुमति है, जबकि अन्य धर्मों के अनुयायियों को अपने धार्मिक आयोजनों के लिए कई शर्तों का सामना करना पड़ता है।
    • "फतवे" और धार्मिक आदेश, जो अक्सर संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ होते हैं, खुलेआम जारी किए जाते हैं।
  3. धार्मिक तुष्टिकरण: विशेष समुदायों को कानून के दायरे से बाहर रखकर तुष्टिकरण की राजनीति की जा रही है।
    • ट्रिपल तलाक जैसे मुद्दे पर लंबे समय तक निर्णय न लेना इसका उदाहरण है।
    • "जहाद," "लव जहाद," और अन्य विवादास्पद गतिविधियों पर राज्य का मौन चिंता का विषय है।

सेक्युलर शब्द: हिंदुओं के लिए असमानता का प्रतीक?

यदि "सेक्युलर" शब्द का सही अर्थ सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और निष्पक्षता है, तो हिंदुओं को बराबरी का अधिकार क्यों नहीं दिया जाता?

  • कब्रिस्तान बनाम श्मशान: कब्रिस्तानों के लिए जमीन आवंटित की जाती है, लेकिन श्मशान घाटों के लिए यही अधिकार नहीं दिया जाता।
  • धार्मिक शोर और कानून: धार्मिक आयोजनों में लाउडस्पीकर और सार्वजनिक स्थानों का उपयोग विशेष धर्मों के लिए सहज है, लेकिन अन्य धर्मों पर सख्ती बरती जाती है।
  • आसमान से जुड़े कानून: भारतीय समाज में "आसमानी किताबों" के नाम पर हिंसा और कट्टरता को सही ठहराया जाता है, जबकि हिंदू परंपराओं को वैज्ञानिकता के नाम पर खारिज कर दिया जाता है।

क्या सेक्युलर शब्द को संविधान से हटाना चाहिए?

अब यह प्रश्न उठता है कि यदि "सेक्युलर" शब्द का उपयोग अपने वास्तविक उद्देश्य से भटक गया है, तो क्या इसे संविधान से हटाना उचित होगा?

  1. असली सेक्युलरिज़्म: यदि "सेक्युलर" का अर्थ सभी धर्मों के लिए समानता है, तो इसे व्यवहार में लागू करना चाहिए, न कि केवल कागज़ पर।
  2. तुष्टिकरण का अंत: यदि सेक्युलर शब्द का अर्थ तुष्टिकरण है, तो इसे हटाना ही बेहतर होगा।
  3. हिंदू राष्ट्र का विचार: क्या विभाजन के बाद बचा हुआ भारत हिंदुओं का राष्ट्र होना चाहिए था? क्या इसे "सेक्युलर" बनाए रखना ऐतिहासिक भूल थी?

निष्कर्ष

"सेक्युलर" शब्द का सही अर्थ और उसका उपयोग आज पुनर्विचार का विषय है। अगर यह समानता के बजाय असमानता और तुष्टिकरण का प्रतीक बन गया है, तो इसे संविधान से हटाना और एक नई दिशा में विचार करना आवश्यक हो सकता है।

धर्मनिरपेक्षता का सही अर्थ तभी होगा जब:

  • किसी समुदाय को विशेषाधिकार न मिले।
  • हर धर्म को समान अधिकार और सम्मान मिले।
  • राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हो, न कि किसी धर्म विशेष का तुष्टिकरण।

"सेक्युलर" शब्द को बनाए रखना या हटाना केवल शब्दों का खेल नहीं है, बल्कि यह भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना का पुनर्मूल्यांकन है। भारत को एक ऐसा राष्ट्र बनाना होगा जहां धर्म का उपयोग राजनीति का हथियार न बने, बल्कि सभी धर्मों के लोग एक समान गरिमा और अधिकारों के साथ जी सकें।

 - बिमलेंद्र झा
 

Disclaimer (अस्वीकरण): "यह लेख ऐतिहासिक तथ्यों, सामाजिक परिप्रेक्ष्य, और संविधान के प्रावधानों पर आधारित विचारों का निष्पक्ष विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इसका उद्देश्य किसी धर्म, समुदाय, व्यक्ति, या संस्था की आलोचना करना या भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है। यह लेख पूरी तरह से भारत की समावेशी संस्कृति, लोकतांत्रिक मूल्यों, और समाज के सभी वर्गों के उत्थान की भावना को बढ़ावा देने के लिए लिखा गया है। कृपया इसे इसी उद्देश्य से पढ़ें और समझें।"

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