छठ पर्व: सहिष्णुता, समानता और आत्मनिर्भरता का महापर्व

 


छठ पर्व: सहिष्णुता, समानता और आत्मनिर्भरता का महापर्व

छठ पर्व बिहार का न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह संस्कृति, समाज और परंपराओं से गहराई से जुड़ा एक अद्वितीय महापर्व भी है। इसकी विशेषता केवल इसके धार्मिक पहलू तक सीमित नहीं है; यह पर्व सामाजिक सहिष्णुता, आत्मनिर्भरता और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता का प्रतीक भी है। हर वर्ष लाखों लोग, बिना किसी बाहरी सहायता के, स्वेच्छा से इस पर्व को सादगी और संयम के साथ मनाते हैं। इस पर्व का महत्व इतने व्यापक रूप में फैल चुका है कि यह न केवल बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश तक सीमित है, बल्कि देश-विदेश के कोने-कोने में इसे समान श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाता है।

1. समानता और समाज का मेल-मिलाप

छठ पर्व समाज में समानता का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस पर्व में समाज के हर वर्ग और जाति के लोग एक समान रूप से भाग लेते हैं। चाहे कोई कितना भी सम्पन्न हो या आर्थिक रूप से साधारण, सभी लोग एक समान भक्त के रूप में नदी घाट पर उपस्थित होते हैं। छठ के दौरान घाट पर किसी प्रकार का विशेषाधिकार नहीं होता; वहाँ हर व्यक्ति समान है। इस पर्व का सबसे बड़ा संदेश है कि समाज में सभी का योगदान और स्थान महत्वपूर्ण है।

छठ पर्व समाज में मेल-मिलाप और भाईचारे का संदेश देता है, जो जातिगत और सामाजिक भेदभाव को मिटाकर समरसता को बढ़ावा देता है। यह पर्व एक प्रकार से समाज के लोगों को एकसमान बनाकर उनके दिलों में अपनेपन की भावना का संचार करता है।

2. पंडितों और मध्यस्थता से मुक्ति

छठ पर्व की एक अनोखी विशेषता यह है कि इसमें किसी पंडित या पुजारी की आवश्यकता नहीं होती। यह पर्व भक्त और भगवान के बीच सीधा संबंध स्थापित करता है। केवल शुभ मुहूर्त का निर्धारण पंडित द्वारा किया जाता है, लेकिन इसके बाद का पूरा अनुष्ठान स्वयं व्रती ही करते हैं। यह पर्व आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता का प्रतीक है, जहाँ आडंबरों का अभाव होता है और केवल श्रद्धा और समर्पण का महत्व होता है।

यह अद्वितीय पर्व सभी को अपने-आप पूजा-अर्चना करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है, जिससे भक्तों में एक अलग ही आत्मीयता और भक्ति का भाव जागृत होता है। यहाँ अनुष्ठान का पूरा स्वरूप आत्मिक होता है, जो किसी भी बाहरी दबाव या औपचारिकता से परे होता है।

3. मातृभाषा और सरल मंत्रोच्चार

छठ पर्व की पूजा में किसी भी जटिल मंत्रोच्चार या संस्कृत श्लोकों का उपयोग नहीं होता। भक्त अपनी मातृभाषा में, जैसे मैथिली, भोजपुरी, मगही या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में, भगवान सूर्य से संवाद करते हैं। यह पर्व अपनी संस्कृति और भाषा से जुड़े रहने का अवसर प्रदान करता है।

इस सरलता के कारण यह पर्व हर वर्ग और उम्र के लोगों के लिए सुलभ है, जिसमें वृद्ध, युवा, और बच्चे सभी बिना किसी कठिनाई के भाग लेते हैं। मातृभाषा का यह महत्व न केवल पर्व को स्थानीयता का रंग देता है, बल्कि अपने जड़ों से जुड़े रहने का भाव भी प्रदान करता है।

4. प्रकृति से जुड़ाव और पर्यावरण संरक्षण

छठ पर्व का एक अनोखा पहलू यह है कि इसमें केवल प्राकृतिक सामग्रियों का ही उपयोग होता है। पूजा में मिट्टी के दिए, बाँस से बने सूप, आम के पत्ते, ताजे फल और अन्य प्राकृतिक चीजों का उपयोग होता है, जो पर्यावरण के अनुकूल हैं। किसी भी प्रकार के प्लास्टिक या कृत्रिम वस्त्रों का प्रयोग नहीं किया जाता, जिससे पर्यावरण पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

यह पर्व हमें प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारियों का अहसास कराता है। यह प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखने और उसकी रक्षा करने का संदेश देता है। छठ के दौरान भक्त केवल सूर्य देवता को अर्घ्य देते हैं, लेकिन इसके माध्यम से वे पृथ्वी, जल, वायु और आकाश सभी तत्वों को नमन करते हैं।

5. स्व-प्रशासन और अनुशासन का अद्वितीय प्रदर्शन

छठ के दौरान लाखों लोग बिना किसी प्रशासनिक हस्तक्षेप के गंगा, यमुना, कोसी या अन्य जलस्रोतों के घाटों पर एकत्रित होते हैं। लाखों की भीड़ के बावजूद किसी प्रकार का असंतुलन या अव्यवस्था नहीं होती। स्थानीय नागरिक मिलकर घाटों की सफाई, व्यवस्था और अन्य आवश्यक तैयारियों को पूरा करते हैं।

छठ का यह अनुशासन हमें बताता है कि बिहार के लोग स्व-प्रशासन और आत्म-निर्भरता में कितने समर्थ हैं। यह समाज के स्व-प्रबंधन का एक बेहतरीन उदाहरण है, जो किसी अन्य राज्य या देश में देखने को शायद ही मिलता हो।

6. प्रवासी मजदूरों का दर्द और पर्व से जुड़ाव

बिहार के लाखों लोग रोज़गार की तलाश में दूसरे राज्यों और शहरों में प्रवास करते हैं। अपने परिवार, अपनी संस्कृति, और अपनी मिट्टी से दूर रहना उनके लिए एक गहरा दर्द होता है। छठ पर्व उनके लिए अपनी जड़ों से जुड़ने और अपने परिवार के पास लौटने का एक अवसर बनकर आता है।

प्रवासी बिहारियों के लिए छठ सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि अपने गाँव और अपने परिवार से दोबारा जुड़ने का एक भावुक अवसर है। जहाँ तक संभव हो, वे इस पर्व पर अपने गाँव लौटते हैं, और जो नहीं लौट पाते, वे अपने नए स्थान पर भी इस पर्व को मनाते हैं। यह पर्व उन्हें उनके सांस्कृतिक गौरव और आत्म-सम्मान का अहसास कराता है, जो बिहार की अस्मिता का हिस्सा है।

7. समाज की सहिष्णुता और सामाजिक एकता का प्रतीक

छठ पर्व एक ऐसा उत्सव है जो जाति, धर्म और भेदभाव से परे है। इस पर्व में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन सभी जातियाँ और समुदाय एक साथ सम्मिलित होते हैं। यहाँ तक कि मुस्लिम समाज के लोग भी इस पर्व में शामिल होते हैं। चूँकि छठ पर्व में मूर्तिपूजा का अभाव होता है और सूर्य देव को प्रत्यक्ष देवता के रूप में पूजा जाता है, अतः अन्य पंथों के लोग भी इस पर्व में सहजता से भाग ले सकते हैं।

यह पर्व धार्मिक संकीर्णताओं से मुक्त होकर सभी पंथों के लोगों के लिए एक श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। छठ पर्व धार्मिक सहिष्णुता और समाज में शांति एवं एकता के संदेश का अद्भुत उदाहरण है।

8. छठ पर्व का आध्यात्मिक महत्व

छठ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार और आंतरिक शुद्धि का पर्व है। छठ व्रती अपनी आत्मा और शरीर को शुद्ध करने के लिए इस कठिन व्रत को करते हैं। चार दिनों का यह पर्व उनके जीवन में अनुशासन, संयम और त्याग की भावना का संचार करता है।

प्रकृति की उपासना का यह पर्व हमें बताता है कि सूर्य देव जीवन के स्रोत हैं और उनकी उपासना हमें आत्म-शक्ति प्रदान करती है। छठ के दौरान की जाने वाली कठोर तपस्या व्रतियों को शारीरिक और मानसिक बल प्रदान करती है, जो आत्म-साक्षात्कार और मन की शांति का मार्ग खोलती है। यह पर्व जीवन में विनम्रता, संयम और सकारात्मकता लाने का एक अवसर है।

9. छठ पर्व की गरिमा और संस्कृति का संरक्षण

छठ पर्व बिहार के लोगों का आत्म-सम्मान और सांस्कृतिक गरिमा का प्रतीक है। यह पर्व उन्हें अपनी संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों से जुड़े रहने का एक अवसर प्रदान करता है। छठ बिहार के लोगों के दिलों में बसे उस गर्व का प्रतीक है, जो अपनी मिट्टी, अपनी संस्कृति और अपने समाज से जुड़े होने का अनुभव कराता है।

10. अतिरिक्त बिंदु

छठ पर्व न केवल बिहार और भारत के अन्य हिस्सों की सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि यह हमें प्रकृति की पूजा करने का एक दुर्लभ अवसर भी प्रदान करता है। इस पर्व के माध्यम से हम प्रकृति, विशेषकर सूर्य देव की आराधना करते हैं, जो हमें जीवन देने वाले ऊर्जा का स्रोत हैं। मैं अपने सभी देशवासियों, चाहे वे किसी भी जाति, पंथ, धर्म या राज्य के हों, यहाँ तक कि भारत के बाहर के देशों में बसे भारतीयों से भी यह अपील करना चाहता हूँ कि वे छठ पर्व को मनाने का विचार करें, विशेष रूप से वे लोग जो किसी समस्या से जूझ रहे हैं और जिन्होंने अब तक विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक साधनों को अपनाने के बावजूद समाधान नहीं पाया है।

यदि आप सच्चे मन से सूर्य नारायण से यह प्रार्थना करें कि आपकी मनोकामना पूरी होने पर आप जीवनपर्यंत छठ मैया को अर्घ्य देंगे, तो मेरा विश्वास है कि आपकी इच्छा अवश्य पूरी होगी। यह एक अनोखा अवसर है जहाँ आप बिना किसी भौतिक लाभ की अपेक्षा के, भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करने की भावना से जुड़ सकते हैं।

मेरा यह आवाहन सभी भारतीय मूल के लोगों के लिए है, चाहे वे किसी भी मान्यता, किसी भी धर्म, या किसी भी पंथ के अनुयायी हों। इस पूजा में आपको भले ही ‘चावल का बोरा मुफ्त में न मिले’, लेकिन आपको यह अहसास अवश्य होगा कि आपने साक्षात भगवान से संवाद किया है। और मेरा मानना है कि एक इंसान के जीवन में यही अनुभूति परम संतोष और सार्थकता की अनुभूति के लिए पर्याप्त है।

 

निष्कर्ष

छठ पर्व एक ऐसा अवसर है, जो बिहार के लोगों को उनके संस्कारों, परंपराओं और उनकी संस्कृति से जोड़ता है। यह पर्व समाज में समानता, सहिष्णुता और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है। चाहे राज्य में औद्योगिक विकास का अभाव हो, चाहे रोजगार के लिए लोगों को अन्य राज्यों का रुख करना पड़े, लेकिन छठ पर्व के दौरान बिहार एकजुट हो जाता है। यह पर्व सिखाता है कि अपनी संस्कृति और अपनी मिट्टी से जुड़ा होना ही सबसे बड़ी श्रद्धा और भक्ति है।


इस प्रकार, छठ पर्व समाज के मूल्यों का प्रतिबिंब है। यह पर्व न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह एक ऐसा अवसर है, जो हमें अपने परंपराओं, अपने आत्म-सम्मान और अपने समाज की सेवा करने के लिए प्रेरित करता है।

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अस्वीकरण

इस लेख में मैंने छठ पर्व के प्रति अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं और विचारों को प्रस्तुत किया है। इसका उद्देश्य किसी भी व्यक्ति, समाज या समुदाय पर अपने विचार थोपना नहीं है। मैं केवल इस पर्व के विभिन्न आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं को साझा करना चाहता हूँ, ताकि लोग इस अद्वितीय अनुष्ठान को समझ सकें और इच्छानुसार इससे लाभान्वित हो सकें। हर व्यक्ति को अपने धर्म और परंपराओं के प्रति स्वतंत्रता का अधिकार है, और मेरा लेख केवल एक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।


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